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Original file line number | Diff line number | Diff line change |
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@@ -0,0 +1,19 @@ | ||
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title: 'परमेश्वर सेंतमेंत प्रेम करता है।' | ||
date: 28/12/2024 | ||
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### इस सप्ताह के अध्ययन के लिए पढ़ेंः | ||
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निर्गमन 33:15 -22; होशे 14:1-4; प्रकाशितवाक्य 4:11; यूहन्ना 17:24; मती 22:1-14; यूहन्ना 10:17, 18. | ||
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> <p>याद वचन</p> | ||
> “मैं उनकी भटक जाने की आदत को दूर करूंगा; मैं सेंतमेंत उन से प्रेम करूंगा, क्योंकि मेरा क्रोध उस पर से उतर गया है" (होशे 14:4) से | ||
हालाँकि पतरस ने तीन बार यीशु का इन्कार किया था, जैसे कि यीशु ने भविष्यवाणी की थी (मत्ती 26:34), ये इन्कार कहानी का अंत नहीं थे। पुनरुत्थान के बाद, यीशु ने पतरस से कहा, "क्या तू इनसे बढ़कर मुझ प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँ, प्रभु; तू तो जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, “मेरे मेमनों को चरा, ” उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?" उसने उससे कहा, “हाँ, प्रभु; तू जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।" उसने उससे कहा, मेरी भेड़ों की रखवाली कर।" उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?" पतरस उदास हुआ कि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?" और उससे कहा, "हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।” (यूहन्ना 21:15-17)। जिस प्रकार पतरस ने तीन बार यीशु का इन्कार किया था, उसी प्रकार यीशु ने महत्वपूर्ण प्रश्न के माध्यम से, "क्या तू मुझ से प्रेम करता है?" - पतरस को तीन बार प्रश्न किया। | ||
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हमारी परिस्थितियाँ पतरस से कितनी भी भिन्न क्यों न हों, कई मायनों में सिद्धांत एक ही है। अर्थात्, जो प्रश्न यीशु ने पतरस से पूछा था वह वास्तव में वह अंतिम प्रश्न है जो परमेश्वर हमारे समय और स्थान में हममें से प्रत्येक से पूछता है: क्या तू मुझसे प्रेम करता है? | ||
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सब कुछ उस प्रश्न के हमारे उत्तर पर निर्भर करता है। | ||
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सब्त, जनवरी 4 की तैयारी के लिए इस सप्ताह के पाठ का अध्ययन करें। |
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Original file line number | Diff line number | Diff line change |
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@@ -0,0 +1,18 @@ | ||
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title: 'उचित अपेक्षाओं से परे' | ||
date: 29/12/2024 | ||
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परमेश्वर न केवल हमसे पूछता है, “क्या तू मुझसे प्रेम रखता है, ' बल्कि परमेश्वर स्वयं प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करता है, और सेंतमेंत ऐसा करता है। वास्तव में, वह आपसे, मुझसे और हर दूसरे व्यक्ति से जितना हम कल्पना कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक सेंतमेंत प्रेम करता है। और हम इस प्रेम को उस तरीके से जानते हैं जिस तरह से उसने अपने लोगों के इतिहास में कार्य किया है। | ||
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`निर्गमन 33:15-22 पढ़ें और इन पदों के संदर्भ और उस कहानी पर विचार करें जिसमें वे प्रकट होते हैं। यह परिच्छेद, विशेषकर पद 19, परमेश्वर की इच्छा और प्रेम के बारे में क्या प्रकट करता है?` | ||
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सब खोया हुआ लग रहा था। मिस्र की दासता से परमेश्वर द्वारा अपने लोगों की आश्चर्यजनक मुक्ति के कुछ ही समय बाद, इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था और एक सुनहरे बछड़े की पूजा की थी। जब मूसा पहाड़ से नीचे आया, तो उसने देखा कि उन्होंने क्या किया है, और उसने दस आज्ञाओं वाली तख्तियों को नीचे फेंक दिया और उन्हें तोड़ दिया। हालाँकि लोगों ने उन वाचा संबंधी तमाम विशेषाधिकारों और आशीर्वादों का अधिकार खो दिया था जो परमेश्वर ने उन्हें मुफ्त प्रदान किया था, वाचा आशीर्वाद पाने की उनकी अयोग्यता के बावजूद परमेश्वर ने सेंतमेंत उनके साथ वाचा संबंध में बने रहने का विकल्प चुना। | ||
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निर्गमन 33:19 में लिखा है, "जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूँ उसी पर अनुग्रह करूंगा, और जिस पर दया करना चाहूँ, उसी पर दया करूँगा, " का अर्थ अक्सर गलत समझा जाता है कि परमेश्वर मनमाने ढंग से दयालु होना चुनता है और कुछ प्रति दयालु, परंतु दूसरों के प्रति नहीं। हालाँकि, इस संदर्भ में परमेश्वर यह नहीं कह रहा है कि वह मनमाने ढंग से कुछ लोगों के प्रति प्रेमी और दयालु होगा और दूसरों के प्रति नहीं। परमेश्वर ऐसे काम नहीं करता है, यह कुछ लोकप्रिय धर्मशास्त्रों के विपरीत है जिसमें परमेश्वर कुछ लोगों को खो जाने और शाश्वत निंदा का सामना करने के लिए पूर्वनिर्धारित करता है। | ||
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तब परमेश्वर यहाँ पर क्या घोषणा कर रहा है? निश्चित रूप से परमेश्वर यह घोषणा कर रहा है कि, सभी के सृष्टिकर्ता के रूप में उसके पास सबसे अयोग्य लोगों को भी मुफ्त अनुग्रह और करुणा प्रदान करने का अधिकार है। और वह इस स्थिति में सुनहरे बछड़े की उपासना के तौर पर विद्रोह के बाद भी अपने लोगों, इस्राएल को दया दिखा कर ऐसा कर रहा है, भले ही वे इसके लायक नहीं थे। | ||
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यह कई उदाहरणों में से एक है जहाँ पर परमेश्वर अपने प्रेम को प्रकट करता है और ऐसा किसी भी उचित अपेक्षा से परे करता है। निश्चित रूप से यह हम सभी के लिए अच्छी खबर है! | ||
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`किन तरीकों से, किसी भी उचित अपेक्षाओं के वगैर, परमेश्वर ने आप पर अपना प्रेम प्रकट करना जारी रखा है?` |
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title: 'एकतरफा प्रेम' | ||
date: 30/12/2024 | ||
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पतित मानवता के प्रति परमेश्वर के प्रेम का अद्भुत उदाहरण होशे की कहानी में मिलता है। परमेश्वर ने भविष्यवक्ता होशे को आज्ञा दी, "जाकर एक वेश्या को अपनी पत्नी बना ले, और उसके कुकर्म के बच्चों को अपने बच्चे कर ले, क्योंकि यह देश यहोवा के पीछे चलना छोड़कर वेश्या का सा बहुत काम करता है" (होशे 1:2)। इस्राएल की बेवफाई और आध्यात्मिक वेश्यावृत्ति के बावजूद, होशे और उसकी बेवफा पत्नी को अपने लोगों के लिए परमेश्वर के प्रेम का एक जीवित वस्तु - सबक बनना था। अर्थात्, यह उन लोगों को परमेश्वर द्वारा मुफ्त दिये गये प्रेम की कहानी है जो इसके योग्य नहीं हैं। | ||
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वास्तव में, परमेश्वर की निष्ठा और प्रेम के बावजूद, लोगों ने बार-बार उसके विरुद्ध विद्रोह किया। तदनुसार, पवित्रशास्त्र बार- बार परमेश्वर को एक बेवफा जीवनसाथी के एकतरफा प्रेमी के रूप में वर्णित करता है। उसने अपने लोगों से पूरी तरह और ईमानदारी से प्रेम किया था, लेकिन उन्होंने उसका तिरस्कार किया और अन्य देवताओं की सेवा और पूजा की, जिससे उसे गहरा दुःख हुआ और रिश्ते को तोड़ दिया, जो मरम्मत से परे प्रतीत होता था। | ||
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`होशे 14:1-4 पढ़ें। ये पद अपने लोगों के प्रति परमेश्वर के दृढ़ प्रेम के बारे में क्या प्रकट करते हैं?` | ||
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अपने लोगों द्वारा बार-बार विद्रोह के बाद, परमेश्वर घोषणा करता है: “मैं उनके भटकाव को ठीक कर दूंगा, मैं उनसे सेंतमेंत प्रेम करूंगा”। वाक्यांश में “सेंतमेंत” शब्द "मैं उन्हें सेंतमेंत प्रेम करूंगा" एक हिब्रू शब्द (नेदाबाह) का अनुवाद करता है, जिसका अर्थ है कि जो स्वेच्छा से पेश किया जाता है। यह वही शब्द है जिसका उपयोग स्वर्गीय पवित्रस्थान की सेवकाई में मुफ्त बलिदान के लिए किया जाता है। | ||
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होशे की पूरी किताब में, और पवित्रशास्त्र की संपूर्ण कहानियों में, परमेश्वर अपने लोगों के प्रति अद्भुत प्रतिबद्धता और करुणा दिखाता है। भले ही वे बार-बार अन्य प्रेमियों के पीछे पड़ गए, वाचा रिश्ते को तोड़ दिया, जो मरम्मत (पुनर्बहाल) से परे प्रतीत होता था, परमेश्वर ने अपनी मुफ्त इच्छा से उन्हें अपना प्रेम देना जारी रखा। लोग परमेश्वर के प्रेम के पात्र नहीं थे; उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था और इस पर किसी भी उचित दावे को खो दिया था। फिर भी, परमेश्वर ने बिना किसी दबाव, नैतिक या अन्य दबाव के, उन्हें प्रेम करना जारी रखा। यहाँ और अन्यत्र, पवित्रशास्त्र लगातार परमेश्वर के प्रेम को स्वतंत्र और स्वैच्छिक के रूप में प्रदर्शित करता है। | ||
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`बहुत से लोग परमेश्वर को एक दूर का और कठोर शासक और न्यायाधीश मानते हैं। एक बेवफा जीवनसाथी के एकतरफा प्रेमी के रूप में परमेश्वर का तिरस्कार और दुःखी होने की कल्पना आपको परमेश्वर को अलग तरह से देखने में कैसे मदद करती है? यह परमेश्वर के साथ आपके संबंध को देखने के तरीके को कैसे बदलता है?` |
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